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योगी सरकार के ‘सांप्रदायिक आदेश’ पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कांवड़ रूट पर नेम प्लेट नहीं लगेगा

Supreme Court stays Yogi government's 'communal order', nameplates will not be installed on Kanwar route

द लोकतंत्र : कांवड़ रूट पर नेम प्लेट लगाने के योगी सरकार के आदेश पर आज सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। कांवड़ रूट पर नेम प्लेट लगाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम प्रशासन की तरफ से जारी निर्देश के अमल पर रोक लगा रहे हैं। दुकानदार खाने का प्रकार लिखें। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर यूपी सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कांवड़ रूट पर पड़ने वाली दुकानों पर दुकानदारों का नाम लिखने का आदेश दिया गया था। इन याचिकाओं में उत्तराखंड-एमपी के कुछ शहरों में ऐसे ही आदेशों का जिक्र किया गया था।

दरअसल, उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा रूट की फल-फूल और होटल-रेस्टोरेंट पर दुकानदार का नाम लिखे जाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया है। आदेश के तहत कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों को पहचान बताने की जरूरत नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को केवल खाने के प्रकार बताने होंगे। उन्हें बताना होगा कि भोजनालय में शाकाहारी व्यंजन परोसा जा रहा है या मांसाहारी। 

योगी आदित्यनाथ सरकार को बड़ा झटका

बता दें, सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने योगी आदित्यनाथ सरकार को बड़ा झटका दे दिया है। साथ ही, उत्तराखंड में भी जारी इस प्रकार के आदेश पर रोक लगा दी गई है। दरअसल, योगी सरकार के आदेश के बाद पूरे देश में हिंदू बनाम मुस्लिम की बहस छिड़ गई थी। विपक्ष जहां इस आदेश को सांप्रदायिक और धर्म के आधार पर बाँटने वाला बताया था वहीं सरकार के सहयोगी दलों ने भी इस आदेश की मंशा पर प्रश्नचिह्न उठाया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 26 जुलाई को सुनवाई की अगली तारीख निर्धारित की है। साथ ही कोर्ट ने ने यूपी, एमपी और उत्तराखंड की सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

कोर्ट में जिरह के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने क्या कहा

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, अभी यह फैसला 2 राज्यों में हुआ है। 2 राज्य और इसे करने वाले हैं। अल्पसंख्यक और दलितों को अलग-थलग किया जा रहा है। वहीं, दूसरी याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, यह स्वैच्छिक नहीं, अनिवार्य है। वकील सी यू सिंह ने कहा, पुलिस को ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हरिद्वार पुलिस का आदेश देखिए, कठोर कार्रवाई की बात कही गई है। यह हजारों किलोमीटर का रास्ता है। लोगों की आजीविका प्रभावित की जा रही है।

इस पर सिंघवी ने कहा, दुकानदार और स्टाफ का नाम लिखना जरूरी किया गया है। यह exclusion by identity है। नाम न लिखो तो व्यापार बंद, लिख दो तो बिक्री खत्म। इस पर जस्टिस भट्टी ने कहा, बात को बढ़ा-चढ़ा कर नहीं रखना चाहिए। आदेश से पहले यात्रियों की सुरक्षा को भी देखा गया होगा। सिंघवी ने कहा, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध सब इन यात्रियों के काम आते रहे हैं। आप शुद्ध शाकाहारी लिखने पर जोर दे सकते हैं। दुकानदार के नाम पर नहीं। उन्होंने कहा, आर्थिक बहिष्कार की कोशिश है। छुआछूत को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों ने क्या कहा

जस्टिस भट्टी ने कहा, क्या मांसाहार करने वाले कुछ लोग भी हलाल मांस पर जोर नहीं देते? सीयू सिंह ने कहा, देखिए उज्जैन में भी प्रशासन ने दुकानदारों के लिए ऐसा निर्देश जारी कर दिया गया है। जस्टिस राय ने कहा, क्या कांवड़िया इस बात की भी अपेक्षा कर सकते हैं कि खाना किसी विशेष समुदाय के दुकानदार का हो, अनाज किसी विशेष समुदाय का ही उपजाया हुआ हो? इस पर सिंघवी ने कहा, यही हमारी दलील है।

इसके अलावा जस्टिस भट्टी ने केरल के रेस्टोरेंट का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि केरल के एक शहर में 2 प्रसिद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं। एक हिंदू का और एक मुस्लिम का। मैं व्यक्तिगत रूप से मुस्लिम के रेस्टोरेंट में जाना पसंद करता था क्योंकि वहां सफाई अधिक नजर आती थी। इस पर सिंघवी ने कहा, खाद्य सुरक्षा कानून भी सिर्फ शाकाहारी-मांसाहारी और कैलोरी लिखने की बात कहता है।

Prajatantra Bharat News Desk

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